
Gyanvapi Case
Gyanvapi Case: सुप्रीम कोर्ट में मुस्मिल पक्ष की तरफ से इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी. दरअसल, हाई कोर्ट ने एएसआई को सर्वे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था.
Gyanvapi Case: वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में ASI Survey की अनुमति सुप्रीम कोर्ट ने दी है।. मस्जिद पक्ष ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए याचिका दाखिल की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे हाई कोर्ट के फैसले में दखल देने की कोई जरूरत नहीं लगती।.
वाराणसी की अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी के लिए वरिष्ठ वकील हुजैफा अहमदी की दलीलों को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारडीवाला और मनोज कुमार मिश्रा की बेंच ने काफी समय तक सुना।. हमदी ने इमारत को नुकसान पहुंचाने की आशंका जताई, लेकिन जजों ने कहा कि ASI ने सर्वे करने का हलफनामा दे दिया है बिना इमारत को नुकसान पहुंचाए।.
श्रम कानून की बहस नहीं सुनाई गई।.
अहमदी ने यह भी कहा कि सर्वे होना ही नहीं चाहिए; यह सिर्फ ढांचे को नुकसान पहुंचने तक सीमित नहीं है।. प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट में कहा गया है कि सभी धार्मिक इमारतों को 1947 वाले स्वरूप में बनाए रखना चाहिए, इस तरह का सर्वे करवाना पुराने घाव को मिटाने जैसा होगा।. चीफ जस्टिस ने इस पर कहा, “आप निचली अदालत में यह दलील दे सकते हैं लेकिन अभी इसके आधार पर तथ्यों की जांच के आदेश पर रोक नहीं लगाई जा सकती।”. “.
“आस्था निराधार नहीं हो सकती।”.
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने मस्जिद पक्ष के वकील से पूछा, “क्या इस तरह किसी भी निराधार याचिका पर वैज्ञानिक सर्वे का आदेश दिया जाना सही है?” और फिर कहा, “आप जिस बात को निराधार कह रहे हैं, वह दूसरे पक्ष के लिए आस्था हो सकती है, आखिर हम इस पर टिप्पणी क्यों करें?”.
चीफ जस्टिस ने कहा, “निचली अदालत के जज किसी भी स्टेज पर तथ्यों की पड़ताल के लिए वैज्ञानिक जांच का आदेश दे सकते हैं।”. सर्वे की रिपोर्ट को कभी भी मुकदमे का अंतिम निष्कर्ष नहीं माना जाता।. उस रिपोर्ट को दोनों पक्षों ने कोर्ट में पेश किया है, इसलिए हमें इस आदेश में दखल देने की कोई जरूरत नहीं लगती।. “.
“सच सामने आने में क्या समस्या होती है?”.
साथ ही कोर्ट ने हिंदू पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता माधवी दीवान और यूपी सरकार और एसआई के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों को सुना।. माधवी दीवान ने कहा, “एक तरफ तो मस्जिद पक्ष ज्ञानवापी परिसर में देवी देवताओं की मौजूदगी के हमारे दावे को कल्पना बताता है, दूसरी तरफ सर्वे का विरोध भी करता है।. आखिर यह दोनों तरह की बातें कैसे कर सकते हैं? अगर हमारी बातें कल्पना हैं, तो उन्हें सच बताने में क्या मुश्किल है?
सर्वे रिपोर्ट गोपनीय नहीं है।.
बेंच के सदस्य जस्टिस पारदडीवाला ने सुझाव दिया कि ASI की रिपोर्ट को कोर्ट को सीलबंद लिफाफे में ही सौंपने का आदेश देना चाहिए, ताकि वह फिलहाल सार्वजनिक नहीं हो सके. यह सुझाव हुजैफा अहमदी की तरफ से सर्वे के विरोध में लगातार दी जा रही दलीलों के मद्देनजर दिया गया था।. उस समय अहमदी इस पर सहमत नहीं हुए, लेकिन जब साफ हो गया कि सुप्रीम कोर्ट सर्वे पर रोक नहीं लगाने जा रहा था, तो उन्होंने बार-बार कहा कि कम से कम सर्वे की रिपोर्ट को गोपनीय रखने का आदेश दिया जाए. सुनवाई के अंत में।. सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपने औपचारिक निर्णय में शामिल नहीं किया।.